सैर दूसरे दरवेश
सैर दूसरे दरवेश
जब दूसरे दरवेश के कहने की नौबत पहुंची ,वह चार जानो
हो बैठा।
अये दलक पोशो !यह अजीज़ ,बादशाह ज़ादा और फारस के मुल्क का है ,हर फ़न के आदमी वहा पैदा होते है ,चुनांचा "इस्फ़हान निस्फ़ जहां "मशहूर है। हफत इक़लीम के बराबर कोई विलायत नहीं ,वहा का सितारा आफताब है ,और वह सातो को अक़ब में बर्रे आज़म है। आब व हवा वहा की खुश ,और लोग रोशन तबियत और साहब सलीक़ा होते है। मेरे क़िब्ला गाह ने (जो बादशाह उस मुल्क के थे ) बचपन से क़ायदे और क़ानून सल्तनत के तरबियत करने के वास्ते बड़े बड़े दाना उस्ताद हर एक इल्म और कसब के चुन कर मेरी अतलीफी के लिए मुक़र्रर किये थे तो तालीम कामिल हर नोअ की पाकर क़ाबिल हु। खुदा के फ़ज़ल से चौदा बरस के सिन व साल में सब इल्म से माहिर हुआ। गुफ्तुगू माक़ूल ,पसंदीदा और जो कुछ बादशाहो को लायक और दरकार है। सब हासिल किया ,और यही शौक़ शब् व रोज़ था की क़ाबिलो की सोहबत में क़िस्से हर एक मुल्क के ,और अहवाल ओउलूल अज़्म बादशाहो और नाम आओरो का सुना करू।
एक रोज़ एक मुसाहिब
दाना ने खूब तवारीख दा और जहा दीदा था ,मज़कूर
किया की अगरचे आदमी की ज़िन्दगी का कुछ भरोसा
नहीं ,लेकिन अक्सर वस्फ़ ऐसे है की उनके सबब से इंसान का नाम क़यामत तक ज़बानो पर बा खूबी चला जायेगा। मैंने कहा : अगर थोड़ा सा अहवाल उस का
तफ्सील से बयां करो तो मैं भी सुनु और उस पर अमल करू .तब वो शख्स हातिम ताई का माजरा इस तरह से कहने
लगा की हातिम के वक़्त में एक बादशाह अरब का नौफल नाम था। उसको हातिम के साथ बे सबब
नाम अवरी के दुश्मनी कमाल हुई। बहुत सा लश्कर फ़ौज जमा कर कर लड़ाई के खातिर चढ़ आया। हातिम तो खुदा तरस
और नेक मर्द था ,यह समझा की अगर मैं भी जंग की तैयारी करू तो खुदा के बंदे मारे जायेंगे ,और बड़ी खून रेज़ी
होगी। उसका अज़ाब मेरे नाम लिखा जायेगा .यह
सोच कर तन तनहा अपनी जान लेकर एक पहाड़ की खोह में जा छिपा। जब हातिम की गायब होने की
खबर नौफल को मालुम हुई सब असबाब घर बार हातिम
का कर्क किया और मुनादी करवाई की जो कोई ढूंढ कर पकड़ लाएगा पान सी अशरफी बादशाह की
सर्कार से इनआम पायेगा। यह सुन कर सबको लालच आया और जुस्तुजू हातिम की करने लगे।
एक रोज़ एक बूढ़ा
और उसकी बुढ़िया ,दो तीन बच्चे लिए हुए साथ लिए हुए ,लकड़िया तोड़ने के वास्ते ,उस गार
के पास जहा हातिम पोशीदा था ,पहुंचे और लकड़िया उस जंगल से चुनने लगे। बुढ़िया बोली की
अगर हमारे दिन कुछ भले आते ,तो हातिम को कही
हम देख पाते ,और उसको पकड़ कर नौफल के पास ले
जाते ,तो वह पांच सौ अशर्फी देता ,और हम आराम
से खाते ,इस दुःख धंदे से छूट जाते ,बूढ़े ने कहा : क्या टर्र टर्र करती है ? हमारे
क़िस्मत में यही लिखा है की रोज़ लकडिया तोड़े
, और सर पर धर कर बाजार में बेचे ,तब रोटी मिले ,या एक जंगल से बाघ ले जाये। ले अपना काम कर ,हमारे हाथ हातिम का
है जो आएगा ,और बादशाह इतने रुपये दिला देगा ,औरत ने
ठंडी सांस भरी और चुप हो गयी।
इन दोनों के बाते हातिम ने सुनी खुद को छिपाये ,और जान को बचाये ,और इन दोनों बेचारो को मतलब तक न पहुचाये .सच हो की अगर आदमी में रहम नहीं तो वह इंसान नहीं ,और जिसके जी में दर्द नहीं वह कसाई है।
गरज़ हातिम की जवाँ मर्दि ने न क़ुबूल किया की अपने कानो से सुन कर चुप हो गए। वह नहीं बाहर निकल आया और उस बूढ़े से कहा की अये अज़ीज़ ! हातिम मैं ही हु मेरे खुद नौफल के पास ले चल ,वह मुझे देखेगा और जो कुछ रूपये देने का इक़रार किया है। तुझे देगा ,पीर मर्द ने कहा : सच है की इस सूरत में भलाई और बहबूदी मेरी अलबत्ता है लेकिन वह क्या जानिए तुझसे करे ? अगर मार डाले तप मैं क्या करू ? यह मुझसे हरगिज़ न हो सकेगा की तुझसे इंसान को अपनी नफ़अ की खातिर दुश्मन के हवाले करू। वह माल के दिन खाऊंगा ,और कब तक जीऊंगा ? आखिर मर जाऊंगा तो खुदा को क्या जवाब दूंगा ? हातिम ने बेहतरी मन्नत की मुझे ले चल, मैं अपनी ख़ुशी से कहता हु ,और हमेशा इसी आरज़ू में रहता हु की मेरा जान व माल किसी के काम आये तो बेहतर है ,लेकिन वह बूढ़ा किसी तरह राज़ी न हुआ की हातिम को ले जाये और इनआम पाए।
आखिर लाचार
होकर हातिम ने कहा : अगर तू मुझे यु नहीं ले जाता तो मैं आपसे आप बादशाह पास
जाकर कहता हु ,की इस बूढ़े ने मुझे जंगल में एक पहाड़ की खोह में छिपा रखा था। वह बूढ़ा
हंसा और बोला : भलाई के बदले बुराई मिले ,तो
यह नसीब इस रद्द व् बदल के सवाल जवाब में आदमी और भी ाँ पहुंचे ,भीड़ लग गयी। उन्होंने मालूम किया की हातिम यही है , पकड़ लिया
और हातिम को ले चले। वह बूढ़ा भी अफ़सोस करता हुआ पीछे पीछे साथ हो लिया। जब नौफल के रु बा रु ले गए। उसने पूछा की इसको कौन पकड़ के लाया
है ? एक बद ज़ात संग दिल ने बोला ,ऐसा काम सिवाए
हमारे कौन कर सकता है ? यह फतह हमारे नाम है ,हमने अर्श पर झंडा गाड़ा है। एक और त्राणि वाला डेंग मारा कई दिन से दौड़ धूप कर जंगल से पकड़ लाया हु ,मेरी
मेहनत पर नज़र कीजिये और जो क़रार है सो कीजिये।
इसी तरह अशर्फियों के लालच से हर कोई कहता
था ,की यह काम मुझसे हुआ। वह बूढ़ा चिपका हुआ एक कोने में खड़ा था सबकी शेखिया सुन रहा
था ,और हातिम के खातिर रोता रहा। जब अपनी अपनी दिलावरी और मर्दानगी सब कह चुके ,तब
हातिम ने बादशाह से कहा : अगर सच बात पुछु
तो यह है की वह बूढ़ा जो सबसे अलग खड़ा हुआ है। मुझको लाया है ,अगर पहचान
जाते हो तो दरयाफ्त करो और मेरे पकड़ने की खातिर जो कहा है ,पूरा करो ,की सरे डील में ज़बान
हलाल है ,मर्द को चाहिए जो कहे सो करे ,नहीं तो
जीभ हैवान को भी खुदा ने दी है। फिर हैवान और इंसान में क्या फ़र्क़ है।
नौफल ने उस लकड़हारे बूढ़े को पास बुला कर की सच कह ,असल क्या है ? हातिम को कौन पकड़ लाया ? उस बेचारे ने सर से पाव तक जो गुज़रा था सब बता दिया और कहा की हातिम मेरी खातिर आपसे आप चला आया है। नौफल यह हिम्मत हातिम की सुन कर ताज्जुब हुआ की बल बे तेरी सखावत ! अपनी जान का भी खतरा न किया। जितने झूठ दावे हातिम के पकड़ लाने के करते थे हुक्म किया की उनकी टुड्डिया कस कर पांच सौ अशर्फी के बदले ,पान पान से जुतिया उनके सर पर लगाओ की उनकी भी जान निकल पड़े। सच है की झूट बोलना ऐसा ही गुनाह है की कोई गुनाह उसको नहीं पहुँचता। खुदा सबको इस बला से महफूज़ रखे ,और झूट बोलने का चस्का न दे। बहुत आदमी झूट मूट बाके जाते है। लेकिन आज़माइश के वक़्त सजा पाते है।
गरज़ इन सबको मवाफ़िक़ उनके इनाम देकर ,नौफल ने अपने दिल में ख्याल किया की हातिम उस शख्स से (की आलिम को उससे फैज़ पहुँचता है ,और मोहताजों की खातिर जान अपनी अफ़सोस नहीं करता और खुदा की राह में पूरी तरह हजीर है ) दुश्मनी रखनी और उसका मददायी होना ,मर्द आदमियत ,और जवा मर्दि से छिपी है। युही हातिम का हाथ बड़ी दोस्ती और गर्मजोशी से पकड़ कर कहा : क्यू न हो ,जब ऐसे हो तब ऐसे हो। तवाज़ा ताज़ीम कर कर ,पास बिठलाया और हातिम का मुल्क व अम्लाक और माल व असबाब जो कुछ ज़ब्त किया था ,वही छोड़ दिया . नए सिर से सरदारी क़बीला तये की उसे दी और उस बूढ़े को पांच सौ अशर्फिया अपने ख़ज़ाने से दिलवा दी ,और वह चला गया।
जब यह माजरा
हातिम का मैंने सुना ,जी में गैरत आयी और यह ख्याल गुज़रा की हातिम अपने क़ौम का फ़क़त
रईस था ,जिनने एक सखावत के बाअस यह नाम पैदा किया की आज तलक मशहूर है। मैं खुदा के
हुक्म से बादशाह तमाम ईरान का हु ,अगर इस नेमत
से महरूम रहु तो बड़ा अफ़सोस है। फ़िलहाल दुनिया
में कोई काम ,दाद व दहश से नहीं। इस वास्ते
की आदमी जो कुछ दुनिया में देता है , उसका बदला आक़ेबत में लेता है। अगर कोई एक दाना
बोता है ,तो उससे कितना कुछ पैदा होता है। यह बात दिल में ठहरा कर मीर ईमारत को बुलवा
कर हुक्म किया की मकान आली शान ,जिसके चालीस
दरवाज़े बुलंद और बहुत कुशादा हो ,बाहर शहर के जल्द बनवाओ। थोड़े आरसे में वैसी ईमारत
वसीए ,जैसा दिल चाहता था ,बन कर तैयार हुई। और उस मकान में हर रोज़ हर वक़्त ,फज्र से शाम तक ,मोहताजो और बेकसो के हिसाब से
रुपये अशर्फिया देता। और जो कोई जिस चीज़ का सवाल करता मैं उसे माला माल करता।
गरज़ चालीसो दरवाज़े से हाजत मंद आते ,और जो चाहते सो ले जाते। एक रोज़ का यह ज़िक्र है की एक फ़क़ीर सामने के दरवाज़े से आया और सवाल किया। मैंने उसे एक अशर्फी दी। फिर वही दूसरे दरवाज़े से आया ,दो अशर्फिया मांगी .मैंने पहचान के दरगुज़र की और दी। इसी तरह उसने हर एक दरवाज़े से आना और एक एक अशर्फी बढ़ाना शुरू किया ,और मैं भी जान बूझ कर अनजान हुआ और उसके सवाल के मुआफ़िक देदिया। आखिर चालीसवे दरवाज़े की राह से आकर ,चालीस अशर्फिया मांगी ,वह भी मैंने दिलवा दी। इतना कुछ लेकर ,वह दरवेश फिर पहले दरवाज़े से घुस आया और सवाल किया। मुझे बहुत बुरा मालूम हुआ। मैंने कहा : सुन अये लालची ! तू कैसा फ़क़ीर है की हरगिज़ फ़क़ीर के तीनो हर्फो से भी वाक़िफ़ नहीं ? फ़क़ीर का अमल उनपर चाहिए .फ़क़ीर बोला : भला दाता ! तुम्ही बताओ। मैंने कहा : फ से फ़ाक़ा क़ाफ़ से किनायत ,रा से रियाज़त निकलती है। जिसमे यह बाते न हो ,वह फ़क़ीर नही। इतना जो कुछ तुझे मिला है ,इसको खा पी कर फिर आना और जो मांगेगा ले जाना। यह खैरात मोहताजों दूर करने के वास्ते है। न जमा करने के लिए। अये हरीस (लालची) !चालीस दरवाज़ो से तूने एक अशर्फी से चालीस अशर्फियों तक ली ,इसका हिसाब तू कर की रेवड़ी के फेर की तरह कितनी अशर्फिया हुई ? और इसपर भी तुझे हिर्स फिर पहले दरवाज़े से ले आयी। इतना माल जमा कर कर ,क्या करेगा ? फ़क़ीर को चाहिए की एक रोज़ की फ़िक्र कर दूसरे दिन फिर नयी रोज़ी रज़्ज़ाक़ देने वाला मौजूद है। अब हया व शर्म पकड़ ,और सब्र व किनायत को काम फरमा। यह कैसी फ़क़ीरी है जो तुझे मुर्शिद ने बताई है ?
वह मेरी बात सुन कर। खफा और बददिमाग हुआ ,और जितना मझसे लेकर जमा किया था ,सब ज़मीन पर डाल दिया और बोला : बस बाबा ! इतने गर्म न हो। अपनी कायनात लेकर रख छोड़ो ,फिर सखावत का नाम लीजिये ,सखी होना बहुत मुश्किल है ,तुम सखावत का बोझ नहीं उठा सकते ,उस मंज़िल को कब पहुंचोगे ?अभी दल्ली दूर है। सखी के भी तीन हर्फ़ है ,पहले उनपर अमल करो तब सखी कहलाओ। तब तो मैं डरा और कहा : भला दाता ! उसके मायने मुझे समझाओ। कहने लगा : सा से समायी और खा से खौफ इलाही और या से याद रखना अपनी पैदाइश और मरने को। जब तलक इतना न हो ले तो सखावत का नाम न ले। और सखी का यह दर्जा है की अगर बदकार हो भी दोस्त खुदा का है। इस फ़क़ीर ने बहुत मुल्को की सैर की है लेकिन सिवाए बसरे की बादशाह ज़ादी सखी देखने में न आया ,सखावत का जामा ,खुदा ने उस औरत पर क़ता किया है। और सब नाम चाहते है ,पर वैसा काम नहीं करते। यह सुन कर मैंने बहुत मन्नत की और कस्मे दे की मेरी तक़सीर माफ़ करदे। और जो चाहिए ,सो लो। मेरा दिया हरगिज़ न लिया ,और यह बात कहता हुआ चला : अब अगर अपनी सारी बादशाहत मुझे दे ,तो उसपर भी न थुकु ,और न धर मारु। वह चला गया ,पर बसरे के बादशाह ज़ादी की यह तारीफ सुनने से दिल बेकल हुआ ,किसी तरह कल न थी। अब यह आरज़ू हुई की किसी सूरत से बसरे चल कर उस को देखा जाये।